आज जब काग़ज़ कलम लेकर म अक्षर से अपना ख़्याल रखने के लिए कुछ ज्ञान वर्धक बातें लिखने की कोशिश में थी तो अचानक ही हाथ रुक गए। क्या करती? मन ही नहीं मान रहा था। अब बात मन से सम्बन्धित थी तो हल्के से भी नहीं ली जा सकती थी। तो मैंने सोचा चलो आज मन से ही गुफ़्तगू की जाए। धीरे से बात छेड़ी और मन से पूछा – क्या चाहते हो ? तो वह उछल कर बोला- “मित्रों से वार्ता।” तो चलिए दोस्तो, ‘मन की बात आप सब के साथ’ का आग़ाज़ करते हैं।